जीवन बीमा अपने आधुनिक रूप में वर्ष 1818 में इंग्लैंड से भारत आया था। कलकत्ता में यूरोपीय लोगों द्वारा शुरू की गई ओरिएंटल लाइफ इंश्योरेंस(Oriental Life Insurance) कंपनी भारतीय धरती पर पहली जीवन बीमा कंपनी थी।
उस अवधि के दौरान स्थापित सभी बीमा कंपनियों को यूरोपीय समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से लाया गया था और इन कंपनियों द्वारा भारतीय मूल निवासियों का बीमा नहीं किया जा रहा था।
हालांकि, बाद में बाबू मुत्तीलाल सील जैसे प्रतिष्ठित लोगों के प्रयासों से विदेशी जीवन बीमा कंपनियों ने भारतीय जीवन का बीमा करना शुरू कर दिया। लेकिन भारतीय जीवन को घटिया जीवन माना जा रहा था और उन पर भारी अतिरिक्त प्रीमियम लगाया जा रहा था।
बॉम्बे म्युचुअल लाइफ एश्योरेंस (Bombay mutual Life Insurance)सोसाइटी ने वर्ष 1870 में पहली भारतीय जीवन बीमा कंपनी के जन्म की शुरुआत की, और सामान्य दरों पर भारतीय जीवन को कवर किया। अत्यधिक देशभक्ति के उद्देश्यों के साथ भारतीय उद्यम के रूप में शुरू होकर, बीमा कंपनियां समाज के विभिन्न क्षेत्रों में बीमा के माध्यम से बीमा और सामाजिक सुरक्षा के संदेश को ले जाने के लिए अस्तित्व में आईं।
भारत इंश्योरेंस कंपनी (1896) भी राष्ट्रवाद से प्रेरित ऐसी ही कंपनियों में से एक थी। 1905-1907 के स्वदेशी आंदोलन ने अधिक बीमा कंपनियों को जन्म दिया। मद्रास में यूनाइटेड इंडिया, कलकत्ता में नेशनल इंडियन और नेशनल इंश्योरेंस और लाहौर में को-ऑपरेटिव एश्योरेंस की स्थापना 1906 में हुई थी।
महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर, कलकत्ता में। इंडियन मर्केंटाइल, जनरल एश्योरेंस और स्वदेशी लाइफ (बाद में बॉम्बे लाइफ) इसी अवधि के दौरान स्थापित कुछ कंपनियां थीं। 1912 से पहले भारत में बीमा व्यवसाय को विनियमित करने के लिए कोई कानून नहीं था। वर्ष 1912 में जीवन बीमा कंपनी अधिनियम और भविष्य निधि अधिनियम पारित किए गए। जीवन बीमा कंपनी अधिनियम, 1912 ने यह आवश्यक बना दिया कि कंपनियों की प्रीमियम दर सारणी और आवधिक मूल्यांकन ख मांकक द्वारा प्रमाणित किए जाने चाहिए। लेकिन अधिनियम ने कई मामलों में विदेशी और भारतीय कंपनियों के ख च भेदभाव किया, जिससे भारतीय कंपनियों को नुकसान हुआ।
1 सितंबर 1956 में लाइफ इंश्योरेंस कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना हुई, जिसका उद्देश था, जीवन बीमा को बड़े पैमाने पर फैलाना, खास तौर पर गाँव में, ताकि भारत के हर नागरिक को पर्याप्त आर्थिक सहायता उचित दरों पर उपलब्ध करवाई जा सके.जीवन बीमा निगमी के 5 ज़ोनल अधिकारी थे, 33 डिवीज़नल ऑफिसर और 212 शाखा अधिकारी थे, इसके अलावा कार्पोरेट ऑफिस भी बना. जीवन बीमा के कॉन्ट्रैक्ट लंख अवधि के होते हैं और इस पॉलिसी के तहत हर तरह की सेवाएं दी जाती रही हैं, बाद के वर्षों में इस बात की ज़रूरत महसूस हुई कि इसकी कार्यप्रणाली का विस्तार किया जाये
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